रोग उपचार

1. Gallbladder में पथरी क्यों बनती है? आयुर्वेद में Gallbladder Stone का इलाज कैसे किया जाता है?

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आयुर्वेद में Gallbladder Stone का इलाज कैसे किया जाता है

पित्ताशय (Gallbladder)

पित्ताशय क्या है ?

उदर के दायीं ओर ऊपर की तरफ स्थित नवीं पसली के पास यकृत के निचले भाग से लगा हुआ लगभग ४ इंच लम्बा गाजर के समान आकृति का पित्ताशय होता है।

पित्ताशय का मुख्य कार्य  क्या है ?

इसका मुख्य कार्य यकृत में बने पित्त के एक अंश को इकट्ठा करना है। इसमें लगभग ४५ सी०सी० पित्त जमा रहता है। जब भोजन आमाशय से आगे बढ़ता है तो पित्ताशय के विक्षोभ से पित्त निकलकर भोजन में मिल जाता है, जिससे भोजन के स्निग्धांश वसा और प्रोटीन का पाचन होता है। स्वस्थ पित्ताशय २४ घंटे में दो या तीन बार खाली हो जाता है। जब भोजन नहीं किया जाता है तो पित्त पित्ताशय में इकट्ठा होता रहता है। इसका जलीय अंश पुनः शरीर में पच जाता है, जिससे पित्त शनैः-शनैः पाँच से दस गुना तक गाढ़ा हो जाता है।

Bile duct. Human biliary tree. Anatomy concept for medical designs. Vector illustration isolated on a white background in cartoon style.

पित्त (Bile)

पित्त सुनहरे भूरे रंग का यकृत का स्राव है। इसका स्वाद बहुत कड़वा होता है। यह पाचक रस होते हुए भी भयंकर विष है। यह लसलसा, क्षारमय, वसा और प्रोटीन का उत्तम पाचक है। आँतों का उद्दीपक है और उन्हें क्रियाशील रखता है। पित्त में छियासी प्रतिशत जल का अंश होता है इसमें पित्तीय लवण, पित्तीय रंजक, लेसिथिन और कोलेस्ट्रॉल होता है।

यकृत से पित्त का स्राव निरन्तर होता रहता है। भोजन करने पर इसका उत्पादन कुछ अधिक मात्रा में होता है। पित्ताशय में एकत्रित पित्त का कुछ अंश पाचनक्रिया में व्यय होता है, कुछ बाहर निकल जाता है और अधिकांश शरीर में जज़्ब हो जाता है। आँतों में पहुँचकर यह उनका पाचन करने के साथ ही खाद्य पदार्थ को सड़ने नहीं देता।

यदि  पित्त भोजन में न मिले तो आँतों में उपस्थित खाद्यपदार्थ जल्दी ही सड़कर गैस उत्पन्न करने लगे।

पथरी (Gallbladder Stone)

पित्ताशय की पथरी पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक बनती है। लगभग ४०-४५ वर्षीय, स्थूल शरीरवाली महिलाएँ जो कार्बोहाइड्रेट तथा वसायुक्त भोजन अधिक मात्रा में लेती हैं, उनमें पथरी बनने की सम्भावना अधिक रहती है। पथरी बालू के कण और सरसों के दाने के आकार से लेकर अखरोट या अंडे के बराबर आकार की होती है। इनकी संख्या एक से लेकर पचासों तक हो सकती है। ताजी पथरी नम और आर्द्र होती है। ये पथरियाँ काले, हरे, सफेद, खाकी आदि कई रंगों की होती हैं।

Gallbladder में पथरी क्यों बनती है ?

पथरी बनने के निम्नकारण होते हैं —

  • पित्ताशय में पित्त अधिक समय तक रुका रहने के कारण ५-१० गुना अधिक गाढ़ा होने के बाद और भी गाढ़ा हो जाय और उसमें जीवाणु का संक्रमण हो जाय तो पथरी बन सकती है।
  • व्यायाम न करने से, बैठे रहने से, स्थूल व्यक्तियों में तथा गर्भावस्था में पित्त अधिक देर तक संचित रहने से गाढ़ा हो जाता है। पित्ताशय की दीवारें क्षुभित होने से शोथ हो जाता है और श्लेष्मस्राव होने लगता है। ये छोटे-छोटे श्लेष्मकण तह पर तह चढ़कर धीरे धीरे पथरी (Gallbladder Stone) का निर्माण कर देते हैं।
  • यकृत की विकृति के कारण पित्त का निर्माण ठीक ठीक न होने, पित्त में पित्त लवण का अनुपात कम होने या कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक हो जाने पर कोलेस्ट्रॉल पित्ताशय में नीचे अवक्षेप के रूप में बैठने लगता है। श्लेष्मकणों के चतुर्दिक् इनकी तह बैठने लगती है। उसके ऊपर पुनः कैल्सियम की तह बैठ जाती है। इस प्रकार तह पर तह बैठते रहनेसे छोटी छोटी पीले रंग की पित्ताश्मरी बन जाती है।
  • गर्भावस्था तथा मधुमेह में भी कोलेस्ट्राल की वृद्धि हो जाती है, जिसके कारण पथरी (Gallbladder Stone) निर्मित हो जाती है।
  • असन्तुलित अप्राकृतिक आहार-विहार भी पथरी बनने का मुख्य कारण है। आक्जैलिक एसिडयुक्त भोजन की अधिकता से कैल्सियम के कारण पथरी का निर्माण होता है। चॉकलेट, चाय, बिस्कुट, फास्ट फूड, डबलरोटी आदि में आक्जैलिक एसिड की अधिकता होती है। हरी साग सब्जी कम खाना, अधिक मात्रा में भोजन, क़ब्ज़ होना, पानी कम पीना, गरिष्ठ मांसाहारी भोजन करने से यह रोग अधिक होता है।
  • अतिनिद्रा, मद्यपान, प्रदररोग, मानसिक तनाव और नाडीदौर्बल्य के कारण यकृत्र रोगी हो जाता है। रोगी यकृत्में तैयार हुआ पित्त विकारयुक्त, गाढ़ा और चिपचिपा होता है, जो पित्ताशय में जाकर प्रदाह और शोथ उत्पन्न कर देता है। दूषित पित्त और कफ सूखकर कड़े हो जाते हैं। इनपर सतह चढ़ते रहने से पथरी बन जाती हैं। ये पथरियाँ पित्ताशय में पड़ी रहकर दिनोदिन बड़ी होती रहती हैं।
  • पित्त लवण और कोलेस्ट्रॉल का सामान्य अनुपात २५:१ का होता है। यदि किसी विकृति के कारण यह अनुपात १३:१ हो जाता है तो पित्ताशय में कोलेस्ट्रॉल का अवक्षेप बैठने लगता है जो समय पर पथरी (Gallbladder Stone) का आकार ले लेता है।
  • पित्त के निकलने के मार्ग, पित्त वाहिनी में किसी प्रकार की रुकावट आने के कारण पित्ताशय में पित्त अधिक गाढ़ा हो जाता है। उसमें संक्रमण होने पर पूय और श्लेष्म उत्पन्न हो जाते हैं जो पथरी उत्पत्ति के कारक हैं।

Gallbladder में पथरी होने का लक्षण

  •  जब पथरी पित्ताशय से निकलकर पित्तवाहिनी में पहुँचकर अटक जाती है तो पित्त के मार्ग में अवरोध के कारण असह्य वेदना होने लगती है। यह शूल अत्यन्त दारुण होता है। दर्द उदर के दाहिनी ओर यकृत्के नीचे से पित्ताशय में आरम्भ होता है और वहाँ से पीठ के निचले भाग में कंधे तक फैल जाता है।
  • दर्द की लहरें कुछ अन्तराल से उठती रहती हैं। चीखने चिल्लाने की स्थिति आ जाती है। ठंडा पसीना छूटने लगता है। अधिक समय तक वेदना होने पर दर्द अपने आप ठीक हो जाता है।
  • अरुचि और अपच हो जाता है। भोजन करने के बाद पेट में भारीपन तथा आध्मान होने लगता है।
  • आमाशय में शोथ के कारण आमाशय और उसके आस पास दर्द की अनुभूति होती है।
  • उदर के दाहिने भाग की पेशियाँ कड़ी पड़ जाती हैं और उनमें स्पर्श असह्यता उत्पन्न हो जाती है।
  • कभी कभी ठंड लगकर ज्वर १०२° तक हो जाता है। ऐसी स्थिति में पीलिया के लक्षण भी प्रकट हो सकते हैं।
Gallbladder Stone

चिकित्सा

पथरी के दर्द के समय क्या करें ?

आधुनिक चिकित्सा में दर्द निवारक इंजेक्शन देते हैं। इससे तत्काल आराम मिलता है। वेदनाशामक ओषधियों के प्रयोग से दर्द की अनुभूति तो नहीं होती, परंतु दर्द का कारण पथरी (Gallbladder Stone), अपने स्थान पर मौजूद रहती है। दर्द के कारण को दूर करने का प्रयास करना चाहिये।

  • गरम पानी के टब में बैठने से पित्तवाहिनी में फँसी पथरी निकल जाती है। जब तक दर्द दूर न हो जाय गरम पानी के टब में बैठे रहें। पानी के ठंडा होने पर उसमें थोड़ी-थोड़ी देर पर गरम पानी डालते जायँ।
  • यदि गरम पानी के टब में बैठना सम्भव न हो तो गरम पानी से भीगा तौलिया उदरपर रखें। थोड़ी थोड़ी देर में बदलते रहें। गरम पानी की बोतल भी काम में लायी जा सकती है।
  • प्रातः लगभग एक लीटर पानी में एक चम्मच नमक और एक नीबू का रस निचोड़कर पी लें। प्रत्येक पंद्रह मिनट पर यही क्रिया दोहराते रहें जब तक कि दर्द ठीक न हो जाय। इस बीच में कुछ भी खाना पीना नहीं चाहिये।
  • वेदना शुरू होने का लक्षण प्रकट होते ही एनिमा तथा कटिस्नान या वाष्प स्नान करें।
  • स्वच्छ हवादार स्थान में पूर्ण विश्राम करें। ठीक होने तक उपवास करें। वमन होने पर बर्फ का टुकड़ा चूसें। पानी न पियें।
  • गरम जल या जैतून के तेल में एक चम्मच नीबू का रस मिलाकर प्रत्येक घंटेपर पीते रहें।
  • पौष्टिक सुपाच्य आहार और कुलथी की दाल का पानी पीयें।

वेदना के बाद

  • आहार-विहार का असंयम और क़ब्ज़ दूर करनेका प्रयास करें।
  • पेडू पर प्रतिदिन ठंडे गरम पानी की सेंक तथा एनिमा लेना चाहिये।
  • वाष्प स्नान तथा गरम पानी में भीगा तौलिया कमर के चारों ओर लपेटे।
  • प्रतिदिन व्यायाम, प्राणायाम, यकृत्की मालिश करना चाहिये।
  • सप्ताह में एक दिन उपवास करें। दिन में केवल नीबू का पानी या फलों का रस लें।
  • दूध, मलाई, पनीर, घी आदि वसायुक्त पदार्थों का सेवन न करें। स्नेहहीन भोजन पथरी के रोगी को लाभप्रद होता है।
  • ताजा फल, कुलथी की दाल, हरी साग-सब्जी, मलाई रहित मट्ठा, शहद, फलों का सलाद, जामुन, जामुन की गुठली पथरी रोग में गुणकारी है।
  • मांसाहारी भोजन, तले-भुने गरिष्ठ खाद्यपदार्थ, सूखा मेवा आदि कदापि न लें। मिर्च-मसाला, उत्तेजक खाद्यपदार्थ तथा मादक द्रव्य का स्पर्श न करें। ये पथरी रोग में विषतुल्य हैं।
  • खीरा, गाजर, लौकी, पपीता, मूली, नीबू का रस निकालकर पियें।
  • प्रातः उठकर खाली पेट पानी पियें, दोपहर में भोजन के साथ प्रतिदिन दो बार दो चम्मच हिंग्वाष्टक चूर्ण लें तथा रात्रि को सोते समय त्रिफलाचूर्ण ५ ग्राम तथा हरीतकी २ चम्मच गरम पानी से लें।
  • योगासन (हलासन, धनुरासन, भुजंगासन, शलभासन, पश्चिमोत्तानासन, सर्वांगासन) तथा प्राणायाम नियमित रूप से करें या प्रतिदिन प्रात:काल सूर्य नमस्कार (११ बार) करें।

आधुनिक चिकित्सा (Modern treatment of Gallbladder Stone)

उदर में पथरी (Gallbladder Stone) की उपस्थिति एक विस्फोटक की तरह होती है जो किसी भी समय संकट उत्पन्न कर सकती है। अतः यह पता चलते ही कि पित्ताशय में पथरी है, अच्छी तरह उपचार करना चाहिये। जब पित्ताशय में पथरी बन गयी हो तो, अभी तक कोई ऐसी ओषधि नहीं बन पायी जो उसे किसी भी प्रकार गलाकर निकाल दे।

कभी-कभी ऐसा होता है कि एक्स-रे में कोई पथरी दिखायी देती है। कुछ समय बाद यह पित्तवाहिनी से होकर छोटी आँत में स्वतः चली जाती है। यह पथरी के छोटे आकार के कारण संयोगवश ही होता है।

Gallbladder Stone
Gallbladder Stone

पित्ताशय में पथरी (Gallbladder Stone) उत्पन्न हो जाने पर उसका ऑपरेशन करके पथरी निकाल देना ही समुचित उपचार है। ऑपरेशन करते समय यदि कोई छोटी पथरी (Gallbladder Stone) पित्त की नली आदि में रह जाती है तो भविष्य में पुनः परेशानी हो सकती है। ऑपरेशन करके पथरी (Gallbladder Stone) निकालने के बाद भी रुग्ण पित्ताशय, समस्याएँ उत्पन्न करता रहता है। पित्ताशय, पथरी बनने की एक आम जगह है। इसमें एक बार रोग हो जाने के बाद यह शरीर के लिये संवेदनशील हो जाता है। पुनः इसमें पथरी बनते रहने की अधिक सम्भावना रहती है।

  • लिथोट्रेप्सी

पित्ताशय पथरी (Gallbladder Stone) निकालने की ऑपरेशन के अतिरिक्त एक अन्य पद्धति जिसे लिथोट्रेप्सी कहते हैं, के द्वारा पथरी को सहज ही पराश्रव्य ध्वनि तरंगों द्वारा बारीक टुकड़ों में तोड़कर बाहर निकाल देते हैं। पित्ताशय की पथरी (Gallbladder Stone) के लिये ‘गॉल लिथोट्रिप्टर’ मशीन का प्रयोग करते हैं। इसमें न तो कोई चीरफाड़ करनी पड़ती है, न ही रोगी को बेहोश करना पड़ता है और न ही शरीर पर कोई दाग-धब्बे पड़ते हैं। मात्र आधे घंटे से पैंतालीस मिनट तक ध्वनि तरंगों से चिकित्सा होती है। सम्पूर्ण प्रक्रिया में मात्र ढाई-तीन घंटे लग जाते हैं। इसके बाद रोगी आराम से घर जा सकता है।

सर्वप्रथम अल्ट्रासॉनिक तरंगों द्वारा पथरी के स्थान का पता लगाकर इन पथरियों को लक्षित करके ‘आघात तरंग प्रक्षेपक’ द्वारा उच्च आवृत्ति की ध्वनि तरंगें छोड़ी जाती हैं। तरंगों की दिशा और आवृत्ति पथरी के आकार के अनुसार कम्प्यूटर की मदद से सुनिश्चित की जाती है। तीस से पैंतालीस मिनट तक पराश्रव्य ध्वनि तरंगों को पथरी (Gallbladder Stone) पर छोड़ते हैं, जिससे किसी भी आकार की पथरी (Gallbladder Stone) चूर-चूर हो जाती है। यह चूर्ण धीरे-धीरे आँतों से बाहर निकल जाता है। दर्द न हो इसके लिये स्थानीय संज्ञा शून्य करने की आवश्यकता होती है। इस विधि से पुनः पथरी (Gallbladder Stone) बनने की सम्भावना कम रहती है।

इस रोग को पुनः न होने देने के लिये नियमित दिनचर्या और आहार-विहार इस प्रकार रखना चाहिये । कि रोग उत्पन्न ही न हो। प्रायः यह देखा गया है कि पथरी (Gallbladder Stone) बनने के साथ ही शरीर में स्थूलता भी आती जाती है। इसके लिये नियमित व्यायाम – योगासन – प्राणायाम आदि करते रहना चाहिये।


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