रोग उपचार

1. दमा (Asthma) kyun होता है ? Asthma के लक्षण एवं कारण एवं नियन्त्रण

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दमा (Asthma) kyun होता है ?

दमा (श्वास) एक बहुत कष्टदायक रोग है। यह मनुष्य को शारीरिक तथा मानसिक रूप से अपङ्ग बना देता है। ऐसी मान्यता है कि दमारोग मृत्यु के साथ ही जाता है, परंतु रोगी अगर अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग है, विवेकपूर्ण आहार विहार करता है तो इस रोग से होनेवाले शारीरिक और मानसिक कष्ट नगण्य हो जाते हैं और वह एक स्फूर्तिदायक एवं आनन्ददायक जीवन व्यतीत कर सकता है। दमा (अस्थमा) फेफड़ों को प्रभावित करनेवाला अत्यन्त कष्टकर श्वास रोग है। इसमें साँस की नलिकाएँ सकरी पड़ जाती हैं। जिससे श्वास की सामान्य गति अवरुद्ध सी हो जाती है और साँस फूलने लगती है।

Asthma के लक्षण एवं कारण

आजकल के दूषित खान पान, हवा की अशुद्धि, संक्रमण, तनाव, नमी एवं ठण्डी जलवायु से जब हमारी रोग प्रतिरोध क्षमता कम हो जाती है तब श्वास प्रश्वास तन्त्र कमजोर होने लगता है, फेफड़ों में वायु का पर्याप्त आवागमन नहीं हो पाता। इससे ऑक्सीजनकी कमी एवं कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। नतीजा यह होता है कि साँस फूलने लगती है, छाती में साँय – साँय की आवाज होती है, आवाज साफ नहीं आती, व्यक्ति हाँफने लगता है, आँखों के आगे अँधेरा सा छा जाता है, लेटने में तकलीफ होती है तथा झुककर बैठने में राहत मिलती है, साँस छोड़ने में कष्ट, बेचैनी सी हो जाती है, छाती में जकड़न, भारीपन रहता है,

सूखी या बलगमयुक्त खाँसी होने लगती है। ऐसे ही और भी लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। ये लक्षण दिन में किसी समय, आधी रात, ऋतु परिवर्तन के समय या वर्ष भर किसी भी समय हो सकते हैं। धूल के कणों, धुएँ, ज्यादे शीतल पेय, दही चावल आदि को अतिमात्रा में सेवन करने से तथा कफ बढ़ाने वाले पदार्थ लेने से, बिना भूख के तथा देर से पचने वाले भोजन करने से और तले हुए खाद्य पदार्थ, अचार एवं जैम आदि से दमा रोग को बढ़ावा मिलता है।

Asthma आयुर्वेद का मत

आयुर्वेद के अनुसार मिथ्या आहार – विहार ही श्वास प्रश्वास तन्त्र को प्रभावित करता है और दोष उत्पन्न कर श्वास रोग पैदा करता है। वहाँ पाँच प्रकार के श्वास रोगों का वर्णन मिलता है, जो इस प्रकार हैं —

  • महाश्वास,
  • ऊर्ध्वश्वास,
  • छिन्नश्वास,
  • क्षुद्रश्वास तथा
  • तमकश्वास।

— इन पाँच प्रकार के श्वास रोग में प्रथम तीन कष्टसाध्य एवं शेष दो साध्य बताये गये हैं।


Asthma में छोटी छोटी ध्यान देनेवाली बातें 

  • सुबह उठकर शौच जाने से पूर्व एक डेढ़ किलो पानी अवश्य पीये। पानी अगर ताँबे अथवा चाँदी के पात्र में रातभर रखा हो तो और अच्छा है।
  • शौच मंजन आदि नित्यकर्म से निवृत्त होकर कटिस्नान ले अथवा घुटनों के नीचे दोनों टाँगों को पानी से ५ मिनट तक तर (गीला) करके रखे। इसके लिये पानी की टोंटी के नीचे क्रमशः घुटनों को रखकर घुटने और पिण्डलियों को पानी से तर करते रहे।अगर खड़े होने में परेशानी हो तो स्टूल पर बैठकर पानी के पाइप से आराम से तर कर सकते हैं। इसके बाद बिना पानी पोछे उठ जाय, जो भी धोती आदि कपड़ा पहन रखा हो, उससे अच्छी प्रकार ढक दे, जाड़ा हो तो ऊपर तक मोज़ा पहन ले, जिससे पिण्डलियों में रक्तसंचार बढ़े। सीने (फेफड़ों) से रक्तसंचार होकर पैरों की तरफ दौड़ता है, जिससे श्वास लेने में आसानी होती है।
  • कटिस्नान के लिये एक प्लास्टिक की बड़ी चिलमची लेकर उसे आधा से अधिक जल से भर ले और उसमें थोड़े वस्त्रसहित बैठ जाय। यह ध्यान रखें कि टब इतना बड़ा हो कि पानी नाभि तक आ जाय। पैरों को टब से बाहर रखे। अच्छा हो पैर गीले न हों। दाहिने हाथ से नाभि से नीचे पेट को मलते रहे। यह क्रिया पहले १ मिनट से शुरू करके धीरे धीरे ३ मिनट तक बढ़ा ले जाय। इससे अधिक समय तक बैठने से नुकसान हो सकता है। इस क्रिया का भी वही महत्त्व है जो घुटने, पिंडली-पादस्नान का है। कटिस्नान क़ब्ज़, पेचिश, पेट के रोग, गद्द बढ़ना, गर्भाशय, प्रजनन सम्बन्धित रोग, मूत्राशय के रोग दूर करने में सहायक होता है। कटिस्नान सप्ताह में ३ बार से अधिक न करे। एक दिन में एक ही उपाय करे, कटिस्नान अथवा घुटना, पाद स्नान १-१ दिन अदल बदलकर कर सकते हैं। घुटना, पादस्नान, टाँगों, घुटनों के दर्द में भी बहुत लाभदायक है।
  • जो लोग चाय-दूध आदि के अभ्यस्त हैं, जलक्रिया के बाद ले सकते हैं, साथ ही जो नियमित दवाइयाँ हैं, वे भी उस समय १-२ बिस्कुट के साथ ले सकते हैं।
  • ध्यान का श्वास और हृदय रोग में मुख्य स्थान है। जिस पद्धति से ध्यान जानते हों, अवश्य करे। ध्यान के लिये सुखासन पर पलथी लगाकर बैठ जायँ। जो घुटने आदि के दर्द के कारण पलथी न लगा सकें, कुर्सी का इस्तेमाल कर सकते हैं। पहले दीर्घश्वास लें, दाहिने हाथ के अँगूठे से दाहिना नासाद्वार बंद करके १० बार दीर्घ श्वास लें और निकालें। फिर छोटी तथा दूसरी अनामिका अंगुली से बायाँ नासाद्वार बंदकर दायें नासाद्वार से १० बार दीर्घ श्वास लें और बाहर निकालें। फिर दायाँ नासाद्वार बंद कर बाँयें नासाद्वार से दीर्घश्वास लें, बायाँ नासाद्वार बंदकर दायें नासाद्वार से श्वास बाहर निकालें तथा दायें नासाद्वार से श्वास अंदर भरकर दायाँ नासाद्वार अँगूठे से बंदकर बाँये नासाद्वार से श्वास बाहर निकालें। यह प्रक्रिया दस-दस बार दोहरायें। दिनमें जब भी समय मिले श्वास नि:श्वास की यह प्रक्रिया दोहराते रहें।
  • प्राणायाम की छोटी-सी क्रियाके बाद अपने आने-जाने वाले श्वास पर ध्यान केन्द्रित करें। अंदर जानेवाला श्वास ओठ के ऊपरी भाग को छूकर जा रहा है और बाहर आनेवाला श्वास भी नासिका के नीचेवाले छोर को छूता हुआ बाहर निकल रहा है। श्वास के स्पर्श की अनुभूति पर ही ध्यान केन्द्रित करें। इसे आनापान विधि कहते हैं।
  • ध्यान निरन्तर अभ्यास से होता है। शुरू शुरू में तो जब आप ध्यान पर बैठेंगे तो मन बहुत विचलित होगा तथा आपको आसन से उठा देगा। अतः ध्यान लगे न लगे, आपको आसन पर जमकर बैठना है। शुरू में १५ मिनट की अवधि से लेकर बढ़ाकर धीरे धीरे एक घंटा ले जायँ। भगवान् बुद्ध द्वारा बतायी गयी विपश्यना नामक ध्यान पद्धति इसमें बहुत कारगर सिद्ध हुई है।
  • ध्यान के बाद घूमना भी श्वासरोग में बहुत हितकर है। सुबह शाम शरीर के बल के अनुसार नियमित घूमना आवश्यक है। इससे ताजी हवा मिलने से चमत्कारिक लाभ मिलता है तथा आत्मविश्वास बढ़ता है, जो कि इस रोग में बहुत जरूरी है।
  • घूमने के बाद स्नान से पूर्व नाश्ता करें। नाश्ता जितना हलका करेंगे, श्वास उतना ही ठीक रहेगा। सबसे अच्छा मौसमी फलों का नाश्ता, आम, पपीता, सेब, केला, संतरा, नाशपाती, अमरूद जो भी मीठा फल हो, नाश्ते में लें। कभी-कभी अंकुरित मूँग की दाल, चने आदि ले सकते हैं।
  • अगर जरूरत समझे तो दूध भी ले सकते हैं, इससे शरीर को ताकत मिलती है। श्वासके रोगियों को यह डर रहता है कि दूध बलगम बनाता है, जब कि दूध सुपाच्य है। शरीर में बल की वृद्धि करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। अतः सुबह – शाम एक – एक पाव दूध अवश्य पीयें।
  • डायबिटीज के मरीज नाश्ते में खीरा, टमाटर, दही, अंकुरित मेथी अथवा मूँग ले सकते हैं।

  • सूखे मेवे — बादाम, काजू, किशमिश, मुनक्का, सफेद मिर्च भी श्वासरोग में बहुत अच्छा लाभ करते हैं। ५ मुनक्का, ५ बादाम, २ सफेद मिर्चकी गोली बनाकर रख ले और सुबह-शाम मुँह में रखकर चूसें। मुनक्का को धोकर सुखा लें। उसमें से बीज निकालकर सिल पर पीस लें। बादाम तथा सफेद मिर्च मिक्सी में पीसकर पाउडर बना लें। फिर मुनक्का और बादाम, मिर्च के पाउडर को एक साथ मिला कर गोली बना लें। सुबह शाम चूसें, इससे क़ब्जियत दूर होती है। पाचन बढ़ता है, बलगम निकलता है और बलकी वृद्धि होती है।
  • दोपहर को तथा शाम को रोटी, हरी सब्जियाँ लें। दालों का प्रयोग कम करें। मूँग मसूर हलकी होती हैं। अरहर, उर्द, राजमा, सोयाबीन, चना आदि की दालों से परहेज करना चाहिये।
  • चावल सप्ताह में एक बार ले सकते हैं।
  • खटाई, मिर्च, तेल, वैजिटेबल ऑयल, तली हुई वस्तुएँ, मैदे से बने पदार्थ, पेट में तेजाब बनाने वाले खाद्य पदार्थ, बर्फ अथवा फ्रीज की अति ठंडी वस्तुओं का सेवन न करें। जो भी खायें, सतर्कतापूर्वक ध्यान रखें। जो चीज शरीर को नुकसान दे, जिह्वा के स्वादवश पुनः न खायें। अगर शरीर कृश है तो शुद्ध घीसे बना भोजन इस्तेमाल करें। डालडा, रिफाइन्ड इसमें नुकसान देते हैं।
  • अपराह्न में फल ले सकते हैं। अनार बहुत फायदेमन्द है, बलगम निकालता है तथा अन्य फलों की तरह शक्ति और ताजगी देता है। खीरा और फलों के अधिक सेवन से यह फायदा है कि ये शरीर में तेजाब की मात्रा नहीं बढ़ने देते।
  • श्वास के हर रोगी में ऑक्सीजन की कमी तथा कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। फल क्षारीय होने की वजह से शरीर में क्षार और अम्ल के संतुलन को बनाये रखने तथा शरीर से हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालने में बहुत सहायक होते हैं। रात्रि में सोते समय दूध ले सकते हैं। रात्रिका भोजन जल्दी करें तथा जल्दी सोने की कोशिश करें। श्वासवाले को दिन में सोना वर्जित है।
  • पानी का खूब सेवन करें। ५-६ लीटर पानी रोज पियें। गर्मियों में सादा तथा जाड़ों में गरम पानी पियें यही सावधानी स्नान में बरतें।
  • अगर मौसम बदलने से बरसात अथवा जाड़ों में ठंडे पानी से शरीर में कँपकपी आये तो स्नान में गरम पानी का इस्तेमाल करें। गरम पानी से शरीर में रक्त का संचार बढ़ता है, जिससे पसीना आता है और यह साँस में सहायक होता है। स्नान अपने शरीर की शक्ति के अनुसार करें।
  • शरीर में थकान तथा श्वास की गति न बढ़ने पाये। चाहे तो किसी की सहायता ले सकते हैं।
  • अगर पेट में क़ब्ज़ रहता है तो त्रिफला, मुनक्का अथवा सूखे अंजीर के सेवन से पेट को साफ रखें। श्वासवाले रोगी को यूरोपियन लेटरीन का इस्तेमाल करने में सुविधा रहती है।
  • अंग्रेजी, आयुर्वेदिक, यूनानी अथवा होम्योपैथिक कोई भी दवाई अपने चिकित्सक को सलाह से लें।
  • जिन्हें अधिक श्वास रहता है, उन्हें नेबुलाइजर के प्रयोग से बहुत फायदा होता है। नेबुलाइजर तथा पम्प के इस्तेमाल से खानेवाली दवाइयों के गलत असरसे बचा जा सकता है।
  • शरीर में कोई भी हरकत करने से पूर्व यह सुनिश्चित कर लें कि इससे श्वास तो नहीं फूलेगा। अगर ऐसा है — जैसे मलत्याग और स्नान आदि के लिये जानेसे पूर्व पम्प का अवश्य इस्तेमाल करें ताकि श्वास कष्ट अधिक न हो।
  • शक्ति के अनुसार हल का व्यायाम और प्राणायाम किसी भी अच्छे जानकार की निगरानी में करें। कपालभाति, ब्रहदक्षिका (गर्मी में शीतली), नाडीशोधन, प्राणायाम तथा कोणासन, योगमुद्रा और मत्स्यासन बहुत सहायक होते हैं।
  • अगर वजन अधिक है तो अपने कद के अनुसार वजन को संतुलित आहार विहार से कम करें। नाक, कान, गले के विशेषज्ञ से परामर्श तथा छाती का एक्स-रे, खून की जाँच डॉक्टर की सलाह से अवश्य करायें। रेकीचिकित्सा भी इसमें काफी लाभप्रद सिद्ध हुई है।

दमा (Asthma) का नियन्त्रण

दमा रोग के नियन्त्रण हेतु रोगी इन बातों का ध्यान रखें —

  • रोग बढ़ाने वाले कारणों, स्थान तथा व्यवसाय से बचें।
  • पेट साफ रखें। रात को सोते समय दो बड़े चम्मच केस्टर ऑयल ले सकते हैं।
  • सदा भूख से कम खायें तथा सायंकाल में ही भोजन कर लें।
  • ठण्ड तथा ठण्डी चीजों से बचें।
  • प्रातः तथा सायं शुद्ध हवा का सेवन करें एवं योग क्रियाएँ जैसे — सूर्य नमस्कार, प्राणायाम आदि करें।
  • रात्रि जागरण न करें तथा मानसिक तनाव से बचें।
  • अपने दाँत स्वच्छ रखें, खाने के बाद भी दाँत तथा मुख साफ करें।
  • शराब, तम्बाकू तथा अन्य नशीले पदार्थों से दूर रहें।
  • ज्यादा क्रोध तथा घबराहट से बचें।
  • धूल, गर्दा, फरवाले जानवरों तथा कपड़ों से बचें।
  • घर तथा बिस्तर हमेशा साफ और स्वच्छ रखें।
  • रसोईघर में एग्जोस्ट फैन का प्रयोग करें।
  • पंखे की सीधी हवा में न सोयें। एयर कंडीशन, कूलर भी दमा का वेग बढ़ाते हैं। रात्रि में हवा का आवागमन शुद्ध रखें।
  • यदि किसी विशेष सुगन्ध, फूल, अगरबत्ती या मच्छर भगानेवाली बत्ती अथवा दवा से कष्ट हो तो प्रयोग में न लायें। अधिक व्यायाम, थकाने वाले काम, रूक्ष अन्न, धुआँ, वमन विरेचन का अतियोग, मल मूत्र का धारण, अधिक पानी वाले स्थान पर रहने से बचें।
  • उबले हुए पानी का प्रयोग करें।
  • सप्ताह में एक बार उपवास रखें।
  • ऐसी औषधियों से बचें जो दमा के लक्षण उत्पन्न करती हैं, जैसे — एस्प्रीन, ब्रुफेन आदि।
  • जो माताएँ दमे से पीड़ित हैं, वे अपने शिशु को स्तनपान करा सकती हैं। माँ के दूध से शिशु में रोग – प्रतिरोधी तत्त्व पहुँचते हैं।
  • यदि स्कूली बच्चा दमा – रोगी है तो यह बात माँ – बाप स्कूल में अध्यापक को अवश्य बतायें, जिससे वे बच्चे को दमाकारक कार्यों से अलग रख सकें।
  • आयुर्वेदिक दवाओं का प्रयोग करें। शरीर का शोधन कर्म विशेष लाभकारी है।

आपातकाल की स्थिति में कुछ घरेलू उपाय

  •  सोंठ पाउडर — चौथाई चम्मच, तुलसी – पत्र — पाँच, काला नमक — चौथाई चम्मच, काली मिर्च — पाँच, हल्दी पाउडर — चौथाई चम्मच तथा छोटी पीपल — चौथाई चम्मच — इन छ: द्रव्यों को पावभर पानी में पकायें। पचास ग्राम शेष रहने पर छानकर गर्म – गर्म पियें।
  • छाती पर तिल का तेल गर्मकर थोड़ा  सा नमक मिलाकर मलें।
  • पानीको गर्मकर उसमें सैन्धव नमक मिलाकर दोनों पैर डालकर रखें।
  • अखबार के टुकड़े पर शोरा रखकर जलायें तथा धुआँ सूघें। इस क्रिया से बढ़े हुए वात तथा कफ का शमन होगा और दमा के दौरे में लाभ मिलेगा

कुछ अन्य उपाय

  • एक चम्मच सरसों का तेल लेकर उसमें पुराना गुड़ मिलाकर चाटें।
  • एक चम्मच शुद्ध घी में एक ग्राम शुद्ध गन्धक मिलाकर खाली पेट खायें।
  • हल्दी की एक गाँठ भूनकर पीस लें। सुबह खाली पेट लें, ऊपर से दूध पी लें।
  • नौसादर का फूला दो रत्ती की मात्रा में शहद के साथ सुबह – शाम चाटें।
  • छोटी इलायची, वंशलोचन तथा मुलेठी चूसें। इनमें से कोई एक उपाय नित्य प्रयोग करें।

आकस्मिक स्थिति बच्चों में

  • एक चम्मच अदरक का रस , एक चम्मच तुलसी का रस, शहद एक चम्मच और नमक  एक चुटकी। इन्हें आधा कप गर्म पानी में मिलाकर थोड़ा – थोड़ा पिलाते रहें।
  • छाती तथा पीठ पर गर्म घी थोड़ा – सा नमक मिलाकर मलें।
  • नाभि पर हींग का लेप करें।

जिन बच्चों को दमा की बराबर शिकायत रहती हो

  • बादाम रोगन की पाँच बूँद दूध में रोज दें।
  • नित्य सरसों के तेल की मालिश करें।
  • काकड़ाश्रृंगी, सोंठपाउडर, पीपली — इन्हें सममात्रा में लेकर मिश्रण बनाकर रखें। ठण्ड के लक्षण के समय २५० मिलीग्राम शहद के साथ दिन में तीन बार दें।
  • क़ब्ज़ न होने दें।

दमा – रोगी क्या सेवन करें

दमा – रोगी सादा तथा गर्म भोजन ले। उसे चने का सूप, चने का आटा, अदरक, काली मिर्च, हींग, लौंग, पीपल, तुलसी पत्र, पुदीना, लौकी, तुरई, गाजर, गाजर का रस, सलाद, मूली, पपीता, चीकू, मीठा सेब, मुन्नका, बादाम, जौ, बाजरा, गेहूँ, मूँग, मसूर की दाल, सेंधा नमक, जीरा, शहद – जैसी चीजों का सेवन करना चाहिये तथा शुद्ध जलवायु में रहना चाहिये।

दमा – रोगी क्या सेवन न करें

दमारोगी को लोबिया, मटर, ब्रेड, उड़द की दाल, पनीर, केला, संतरा, तरबूज, देर से पचनेवाला आहार तथा न माफिक आनेवाली वस्तुएँ जो दमे को बढ़ाती हैं, नहीं लेनी चाहिये।

दमा में प्रयोग की जानेवाली कुछ औषधियाँ

  • श्वासचिन्तामणि-रस
  • श्वासकुठार – रस
  • मलसिन्दूर
  • रससिन्दूर
  • चित्रक हरीतकी
  • वासावलेह
  • कनकासव
  • कण्टकार्यवलेह तथा
  • च्यवनप्राश आदि।
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