रोग उपचार

1. बच्चों में Diarrhea के कारण और उसका इलाज

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Diarrhea – आज एड्स – रोग चर्चा को विषय बना हुआ है। प्रतिदिन कुछ न कुछ इसके बारे में सुनने और पढ़ने को मिलता है। किंतु Diarrhea रोग की भयङ्करता एड्स से इस मामले में ज्यादा है कि दो दिनों में डायरिया से मरनेवालों की संख्या दो वर्षों में एड्स से मरनेवालों से कहीं अधिक है। टीकाकरण आदि के द्वारा इसकी मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।

Diarrhea खतरनाक क्यों है?

बार बार अधिक मात्रा में पतले दस्त को Diarrhea कहते हैं यह खतरनाक है; क्योंकि इसके परिणाम स्वरूप मृत्यु हो सकती है। बच्चों में पानी के साथ साथ लवण की भी कमी हो जाती है, जो शरीर की कार्यप्रणाली के लिये अत्यावश्यक है। लवण की कमी विभिन्न प्रकार की समस्याएँ प्रस्तुत करती है। जैसे – ऐसिलोसिस्, एलकलोसिस्, हाइपोकैलेमिया इत्यादि। यदि डायरिया गम्भीर है तो पानी की कमी तथा मृत्यु हो सकती है, परंतु यदि Diarrhea बहुत दिनों से है तो पोषक तत्त्वों की कमी से आँतों में परिवर्तन होता है, जिसके कारण भोजन सुचारु ढंग से पच नहीं पाता है। इससे ग्रस्त बच्चों में खाने की अभिरुचि खत्म हो जाती है।


Diarrhea के कारण

Diarrhea के कारण दो प्रकार के होते हैं

  • (क) जिस कारण की जानकारी हमें होती है और
  • (ख) जिस कारणका हमें पता नहीं होता है।

दूसरे कारण में साठ – सत्तर Diarrhea कारक तत्त्व पाये जाते हैं, जिनमें वाइरल कारण सम्मिलित हैं। पहले कारण में बैक्टीरिया से होनेवाले – जैसे सालमनेला, शिगेला, स्ट्रैप्टो, स्टाफिलोकोकल सम्मिलित हैं। न जानकारी वाले कारक में ओटिटिसमिडिया, पालिटिस्, ओस्टेमाइलिटिस्, निमोनिया इत्यादि। कभी – कभी एलर्जी, अपच आदि से भी डायरिया होती है। यदि बच्चों को Diarrhea के समय पूर्ण पोषक तत्त्व दिया जाय तो १० से १५ प्रतिशत डायरिया से होनेवाली मृत्यु को रोका जा सकता है। 

अतः स्वास्थ्य से सम्बन्धित व्यक्ति अगर Diarrhea से सम्बन्धित घोल (जीवन रक्षक घोल) और पोषक तत्वों के बारे में जानकारी प्राप्त कराये तो यह महान् कार्य होगा। समाज में मुख्यतः घर की औरतें, बच्चे तथा दूसरे व्यक्तियों को अगर जानकारी पहुँचायी जाय तो डायरिया की रोकथाम में काफी मदद मिल सकती है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित बिन्दुओं की तरफ ध्यान देना चाहिये —

  • (क) डायरिया से होनेवाली पानी की कमी की रोकथाम,
  • (ख) डायरिया से होनेवाली पानी की कमी की पहचान,
  • (ग) डायरिया एवं पानी की कमी का उपचार,
  • (घ) कुपोषण की रोकथाम और
  • (ङ) अन्य जानकारियाँ ।

पानी की कमी की रोकथाम

जैसे ही बच्चों को डायरिया हो, उसे घर में उपलब्ध तरल पदार्थ तुरंत देना चाहिये, जैसे चावल का माँड़, शर्बत – शिकंजी (चीनी, पानी, नीबू से बना घोल), दही से बनी नमकवाली लस्सी, दाल का पानी तथा नारियल पानी। माँ का दूध एवं भोजन नहीं रोकना चाहिये।

डायरिया Diarrhea

पानी की कमी की पहचान

पानी की कमी की पहचान प्यास, पेशाब, आँसू, आँखें, मुँह, जीभ, त्वचा, नाड़ी, तालू, साँस तथा तापमान से की जा सकती है। इसकी जानकारी के लिये कुछ चीजें पूछी, कुछ देखी और कुछ महसूस की जा सकती हैं।

  • अगर पेशाब में थोड़ी कमी हो, प्यास थोड़ी ज्यादा लगे तो मध्यम श्रेणी का Diarrhea हो सकता है।
  • परंतु प्यास अगर बहुत ज्यादा लगे, पेशाब बहुत कम लगे, तो गम्भीर श्रेणी का Diarrhea है।
  • देखने पर यदि बच्चा चिड़चिड़ा लगे, रोने पर आँसू न निकले, आँखें फँसी हों, मुँह एवं जीभ सूखे हों तो मध्यम श्रेणी की पानी की कमी है।
  • परंतु अगर बच्चा शान्त हो, आँखें बहुत ज्यादा धँसी हों, जीभ तथा मुँह ज्यादा सूखे हों तो गम्भीर श्रेणी की पहचान है।
  • इसी तरह अगर महसूस किया जाय कि त्वचा को खींचने पर वह धीरे – धीरे अपनी स्थिति में पुनः वापस आये, नाड़ी की चाल तेज हो, तो मध्यम श्रेणी की पानी की कमी है |
  • यदि खींचने पर त्वचा बहुत ही धीरे से अपनी स्थिति में वापस आये, नाड़ी की चाल बहुत ही तेज हो, तो यह गम्भीर पानी की कमी के लक्षण हैं |

डायरिया एवं पानी की कमी की रोकथाम

पूर्वोक्त संकेतों के अनुसार समाज में जीवनरक्षक घोल की उपलब्धि एवं महत्ता के बारे में बताया जा सकता है कि किस तरह और कितनी मात्रा में जीवनरक्षक घोल देकर बच्चों की जानें बचायी जा सकती हैं।

  • जीवनरक्षक घोल का पैकेट १ लीटर स्वच्छ पानी में घोल दिया जाता है और इसे पाँच गिलास बनाया जा सकता है। घोल तैयार होने के बाद अवस्था के अनुसार बच्चों को पिलाते रहना चाहिये।
  • जैसे – छः महीने तक एक – दो कप (बड़ा),
  • सात महीने से बारह महीने तक दो – तीन कप (बड़ा) और
  • एक साल से पाँच साल तक तीन – चार कप (बड़ा) यह घोल दिया जा सकता है।

गम्भीर रूप से पानी की कमी का उपचार नस के द्वारा पानी चढ़ाकर किया जाता है। घोल पिलाने के बाद उलटी हो जाती है और माताएँ डर जाती हैं, परंतु इस हालत में माँ को चम्मच द्वारा धीरे – धीरे घोल पिलाना चाहिये।


कुपोषण की रोकथाम 

बच्चों को डायरिया के समय उचित भोजन कराना चाहिये। डायरिया के बावजूद भोजन अच्छी तरह पच जाता है। अतः लगातार भोजन जरूरी है। कुपोषण के विकास की रोकथाम के लिये उत्तम भोजन वह है जो तुरंत पच जाय (जैसे पका चावल, दाल, बीन्स, आलू, हरा पपीता आदि) और जिसमें पोटैशियम की मात्रा हो (जैसे – नीबू, केला, अनन्नास, नारियल पानी आदि)। बच्चे को उतना ही खिलाना चाहिये, जितना वह चाहे। भोजन दिन में पाँच – सात बार देना चाहिये।


अन्य जानकारियाँ

अधिकतर डायरिया के समय और गम्भीर डायरिया में भी कुपोषित बच्चों को विटामिन ‘ए’ देना चाहिये। हाल के एक अध्ययन के द्वारा ‘ए सोमर’ ने जानकारी दी है कि उन गाँवों में मृत्यु दर ३४ प्रतिशत कम है जहाँ विटामिन ‘ए’ उपलब्ध करायी जाती है। अतः यह निश्चित है कि विटामिन ‘ए’ डायरिया की रोकथाम एवं उपचार में अहम् भूमिका निभाता है।

डायरिया की रोकथाम

समाज में मीडिया, चिकित्सक, स्वास्थ्य-सेवक, स्वयंसेवी संस्थाएँ आदि डायरिया की रोकथाम में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। इसके लिये उन्हें निम्नलिखित तथ्यों की जानकारी होनी चाहिये —

  • (क) भोजन और खान-पान,
  • (ख) पानी,
  • (ग) सफाई तथा
  • (घ) टीकाकरण। 

भोजन और खान-पान

माँ का दूध छोटे बच्चों के लिये उत्तम भोजन है। यदि माँ का दूध सम्भव न हो तो दूसरा दूध देना चाहिये, लेकिन बोतल से नहीं बल्कि कटोरी एवं चम्मच से। चार महीने से ऊपर के बच्चों को अन्य भोजन भी खिलाना चाहिये। मुलायम तथा मसला हुआ भोजन उत्तम है। भोजन अच्छी प्रकार से तैयार करना चाहिये। बर्तन साफ धुले होने चाहिये।

पानी

पीने का पानी जहाँ तक हो सके, साफ जगहों से लेना चाहिये। यह निश्चित कर लेना चाहिये कि पानी पीने के लायक है, नहीं तो उसे उबालकर ही काम में लाना चाहिये। पानी को साफ तथा ढके हुए बर्तन में रखना चाहिये।

सफाई

यह कीटाणुओं को शरीर में प्रवेश करने से रोकने में प्रमुख भूमिका निभाती है। प्रत्येक व्यक्ति को सफाई का ध्यान रखना चाहिये। बच्चों के नाखून एवं हाथों की सफाई तथा गृहिणियों को हाथों और कपड़ों की सफाई अवश्य रखनी चाहिये। खाने – पीने की चीजों को गंदगी से दूर रखना चाहिये। मक्खी सबसे गंदा कीट है। इसे कभी भी खाद्य पदार्थों पर बैठने नहीं देना चाहिये। बासी भोजन बच्चों को नहीं देना चाहिये।

टीकाकरण

खसरा का परिणाम भयावह रूप से डायरिया में बदल जाता है। अतः खसरे का टीका लगवाकर इस बीमारी से बचा जा सकता है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य होता है। कि बच्चों में व्याप्त डायरिया रोग एवं डायरिया से होनेवाली मृत्यु को रोकने में अपना सहयोग प्रदान करें ताकि बच्चे स्वस्थ एवं सानन्द रहें।


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